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नई दिल्ली4 घंटे पहले
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देश में अब तक कुल 8 बार जातीय जनगणना हुई है। 1872 से 1931 के बीच 7 बार ब्रिटिशकाल में और एक बार 2011 में आजाद भारत में।
देश में जनगणना, जातियों की गिनती, परिसीमन और संसद में महिला आरक्षण की कवायद एक साथ शुरू होगी, क्योंकि इनकी टाइमलाइन एक साथ आ गई हैं। जनगणना और जातीय गणना 2026 से शुरू होगी। क्योंकि 2001 में लोकसभा सीटों की संख्या 2026 तक फ्रीज की गई थी।
परिसीमन की कवायद भी 2026 से होगी। क्योंकि 2021 में जनगणना समय पर होती तो परिसीमन 2031 की जनगणना के आधार पर होता। प्रशासनिक सीमाएं बदलने की छूट 31 दिसंबर 25 तक बढ़ेगी, यह पहले 1 जून 2025 थी।
वहीं, महिला आरक्षण का अधिनियम 20 सितंबर 2023 में पारित हुआ था। इसमें यह व्यवस्था की गई कि इस अधिनियम के पारित होने के बाद आगामी परिसीमन और जनगणना के आंकड़ों के आधार पर महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में सीटें आरक्षित होंगी।
समय, जो जनगणना-परिसीमन में लगेगा
- जनगणना; प्रश्नावली, सॉफ्टवेयर और तकनीकी उपकरण तैयार करने में 1-2 साल लगते हैं। इसके बाद फील्ड वर्क शुरू होता है, जो 2-3 महीने चलता है। फिर डेटा सत्यापन और प्रकाशन में 1-2 साल लगते हैं यानी 3-4 साल लगते रहे हैं।
- परिसीमन; आयोग गठन में 1-2 महीने लगते हैं। डेटा संग्रह व विश्लेषण में 6-12 महीने खर्च होते हैं। सार्वजनिक परामर्श में 6-12 महीने लगते हैं। 3-6 माह में अंतिम रिपोर्ट बनती है। लागू होने में 6-12 माह लगते हैं। यानी 2-3 साल लगते हैं। यह समयावधि अनुमानित है। कम-ज्यादा भी हो सकती है।
खर्च, प्रति व्यक्ति औसतन 100 रु. तक
एक अनुमान के अनुसार, जनगणना के लिए करीब 14 हजार करोड़ रु. का आवंटन किया जा सकता है। यानी प्रति भारतीय औसतन 100 रु. का खर्च आएगा। इसमें जातीय जनगणना के अलावा नेशनल पापुलेशन रजिस्टर अपडेट करने की कवायद भी शामिल है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने 2019 में 8,754 करोड़ रु. मंजूर किए थे और 3,941 करोड़ रु. नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर अपडेट करने के लिए रखे गए। बता दें कि विपक्षी दलों ने 2025-26 के बजट में इस मद में सिर्फ 578 करोड़ रखने को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए थे।
2 शर्तें, जो जनगणना के लिए जरूरी हैं…
जनगणना की प्रक्रिया 1 अप्रैल 2026 से शुरू होगी, लेकिन इससे पहले दो वैधानिक जरूरतों को पूरा किया जाएगा…
- पहली शर्त- 1 जनवरी 26 से भौगोलिक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज होंगी, जो 30 जून25 तक फ्रीज के दायरे से बाहर हैं। प्रशासनिक सीमाएं बदलने की छूट 31 दिसंबर 25 तक बढ़ेगी।
- दूसरी शर्त- जातीय गिनती के लिए जनगणना अधिनियम 1948 में संशोधन करना होगा। इसके लिए संशोधन विधेयक तैयार करने की कवायद कैबिनेट के फैसले के तुरंत बाद शुरू हो गई। इससे जुड़ा विधेयक मानसून सत्र में पारित हो जाएगा।
देश में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण टाल दी गई थी। आखिरी बार पूर्ण जातीय जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन में हुई थी। 2011 में भी हुई थी, लेकिन जाति आधारित आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए। आखिरी बार परिसीमन 2002 में हुआ था, जो 2001 की जनगणना के आधार पर 2008 तक लागू किया गया।
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