नई दिल्ली/बीजिंगकुछ ही क्षण पहले
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ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह विदेश मंत्री राजनाथ सिंह का पहला चीन दौरा होगा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 25 से 27 जून तक चीन के किंगदाओ शहर में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेंगे। इस बैठक में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ भी शामिल होंगे।
यह किसी भी भारतीय मंत्री का 7 साल बाद चीन का दौरा होगा। इससे पहले अप्रैल 2018 में उस समय की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन का 4 दिन का दौरा किया था।
यह दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब भारत और चीन के बीच रिश्ते सामान्य करने की कोशिशें चल रही हैं। व्यापार, यात्रा और संवाद फिर से शुरू हो चुके हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली और डेपसांग तथा डेमचोक में गश्त की जानकारी भी सामने आई है।
राजनाथ सिंह की मुलाकात चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून से द्विपक्षीय वार्ता के तौर पर भी होगी। इस दौरान दोनों देशों के बीच वीजा नीति, कैलाश यात्रा, जल आंकड़ों का साझा करना और हवाई संपर्क बहाल करने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हो सकती है।
दोनों नेताओं की पिछली मुलाकात लाओस में ADMM-प्लस शिखर सम्मेलन में हुई थी, जो सीमा विवाद के बाद पहली सीधी बातचीत थी।
SCO की पिछली बैठक पाकिस्तान में थी, जयशंकर शामिल हुए
पिछले साल 15-16 अक्टूबर को इस्लामाबाद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की बैठक के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ से हाथ मिलाया था।
विदेश मंत्री एस जयशंकर पिछले साल 15-16 अक्टूबर को इस्लामाबाद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की बैठक मे ंगए थे। इस दौरान उन्होंने SCO की बैठक को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते।
जयशंकर ने पाकिस्तान-चीन का नाम लिए बिना कहा कि सभी देशों को एक दूसरे की सीमाओं का सम्मान करने की जरूरत है।
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि यदि SCO के मेंबर देशों के बीच दोस्ती में कमी आई है और पड़ोसी से संबंध बिगड़े हैं तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हमारे बीच भरोसे में कमी आई है तो हमें अपने अंदर झांकने और इसकी वजह समझने की जरूरत है।
SCO के बारे में 3 जरूरी बातें…
1. SCO को बनाने की जरूरत क्यों पड़ी
1991 में सोवियत यूनियन कई हिस्सों में टूट गया। इसके बाद रूस के पड़ोसी देशों के बीच बाउंड्री तय नहीं होने की वजह से सीमा विवाद शुरू हो गया। ये विवाद जंग का रूप न ले, इसके लिए रूस को एक संगठन बनाने की जरूरत महसूस हुई।
रूस को यह भी डर था कि चीन अपनी सीमा से लगे सोवियत यूनियन के सदस्य रहे छोटे-छोटे देशों की जमीनों पर कब्जा न कर ले। ऐसे में रूस ने 1996 में चीन और पूर्व सोवियत देशों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया। इसका ऐलान चीन के शंघाई शहर में हुआ, इसलिए संगठन का नाम- शंघाई फाइव रखा गया। शुरुआत में इस संगठन के 5 सदस्य देशों में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान शामिल थे।
जब इन देशों के बीच सीमा विवाद सुलझ गए तो इसे एक अंतरराष्ट्रीय संगठन का रूप दिया गया। 2001 में इन पांच देशों के साथ एक और देश उज्बेकिस्तान ने जुड़ने का ऐलान किया, जिसके बाद इसे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी SCO नाम दिया गया।
2. भारत ने SCO में शामिल होने से इनकार कर दिया था
SCO बनने के बाद भारत को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया था। हालांकि उस समय भारत ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था।
इस बीच चीन ने पाकिस्तान को इस संगठन का सदस्य बनाने की मुहिम शुरू कर दी। इससे रूस को संगठन में चीन के बढ़ते दबदबे का डर लगने लगा। तब जाकर रूस ने भारत को भी इस संगठन में शामिल होने की सलाह दी।
3. इसके बाद 2017 में भारत इस संगठन का स्थायी सदस्य बना। भारत के इस संगठन में शामिल होने की 5 और वजहें भी हैं…
- भारत का ट्रेड SCO के सदस्य देशों के साथ बढ़ता जा रहा था, ऐसे में इस संगठन से संबंध बेहतर करने के लिए।
- सेंट्रल एशिया में अगर भारत को पहुंच बढ़ानी है तो शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन अहम है। इसकी वजह ये है कि इस संगठन में सेंट्रल एशिया के सारे देश एक साथ बैठते हैं।
- अफगानिस्तान पर अपना पक्ष रखने के लिए भारत के पास कोई दूसरा संगठन नहीं है। अगर भारत को अफगानिस्तान में अपनी भूमिका तय करनी है तो उसे इन सभी देशों के सहयोग की जरूरत है।
- आतंकवाद और ड्रग्स की समस्या को खत्म करने के लिए भारत को SCO के देशों के सहयोग की जरूरत है।
- सेंट्रल एशिया के देशों को भी इस संगठन में भारत की जरूरत थी। वो छोटे-छोटे देश नहीं चाहते थे जिससे केवल चीन और रूस ही संगठन में दबदबा बनाए रखें। इसके लिए वो भारत को बैलेंसिंग पावर के तौर पर चाह रहे थे।
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