Thursday, June 26, 2025

US Vs Iran Nuclear Sites; Donald Trump Israel War | Bunker Buster Bomb | अमेरिका को खुली जंग में क्यों उतरना पड़ा: ईरान पर बंकर बस्टर बमों की पूरी खेप कैसे बरसा दी, अब आगे क्या; 5 सवालों के जवाब

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22 जून की सुबह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर बताया कि हमने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर सफल हमला किया। करीब 3 घंटे बाद देश के नाम संबोधन में दावा किया- Iran’s nuclear sites are ‘totally oblit

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अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कैसे किया, आखिर ट्रम्प को खुली जंग में क्यों उतरना पड़ा और अब आगे क्या होगा; भास्कर एक्सप्लेनर में 5 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…

सवाल-1: अमेरिका ने ईरान के 3 एटमी ठिकानों पर हमला कैसे किया?

जवाबः डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने संबोधन में ईरान के एटमी ठिकानों के लिए obliterated शब्द का इस्तेमाल किया। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में ‘obliterate’ का मतलब होता है किसी चीज को इतनी बुरी तरह से मिटा देना कि उसका कोई नामोनिशान न बचे।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से बताया कि छह B-2 बॉम्बर्स ने ईरान के फोर्डो परमाणु ठिकाने पर दर्जन भर 30,000 पाउंड वजनी बंकर बस्टर बम गिराए, जो जमीन के काफी अंदर स्थित है। पहले यह अनुमान लगाया गया था कि फोर्डो न्यूक्लियर साइट को तबाह करने के लिए दो बंकर बस्टर की जरूरत पड़ेगी।

साथ ही, US नेवी की पनडुब्बियों से नतांज और इस्फहान परमाणु ठिकानों पर 30 TLAM क्रूज मिसाइलें दागी गईं। इन्हें 400 मील दूर अमेरिकी पनडुब्बियों से लॉन्च किया गया था। अधिकारी के मुताबिक, एक B-2 बॉम्बर ने नतांज परमाणु ठिकाने पर भी दो बंकर बस्टर बम गिराए।

हालांकि ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था (IAEA) ने कहा है कि अमेरिका के हमलों के बाद भी फोर्डो, नतांज और इस्फहान में कोई रेडिएशन लीक नहीं हुआ है। इन स्थलों की सुरक्षा अब भी सामान्य और स्थिर है।

सवाल-2: ईरान के परमाणु ठिकाने तबाह करने के लिए इन्हीं हथियारों का इस्तेमाल क्यों हुआ?

जवाबः अमेरिका का B2 विमान, चमगादड़ की तरह दिखने वाला बिना टेल यानी पूंछ वाला अत्याधुनिक फाइटर जेट है। ये एक स्टील्थ बॉम्बर है, यानी इसे रडार पर पकड़ना मुश्किल होता है। शीत युद्ध के समय सोवियत रूस के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका ने यह बॉम्बर बनाया था। अमेरिका के पास बीस B2 बॉम्बर फाइटर जेट हैं और उसने अब तक किसी अन्य देश को एक भी B2 बॉम्बर नहीं बेचा है।

यह इकलौता फाइटर जेट है, जिससे खतरनाक MOPB बम दागा जा सकता है। यह बम जमीन के 200 फीट अंदर तक जाकर ब्लास्ट कर सकता है, इसलिए इसे ‘बंकर बस्टर’ भी कहते हैं।

अमेरिका ने इस बम को दक्षिण कोरिया और ईरान को ध्यान में रखते हुए ही डेवलप किया था, ताकि अगर ये देश किसी अंडरग्राउंड बंकर में परमाणु हथियार बनाते हैं तो उसे नष्ट किया जा सके। इसीलिए फोर्डो और नतांज न्यूक्लियर फैसिलिटी को तबाह करने के लिए ये सबसे सटीक हथियार है।

अमेरिका ने अपने B-2 बॉम्बर जहाजों का एक तिहाई बेड़ा हिंद महासागर में एक छोटे से द्वीप डिएगो गार्सिया में तैनात कर रखा था। यहां अमेरिका ने एक बड़ा सैन्य अड्डा बनाया है।

डिएगो गार्सिया द्वीप ईरान से करीब 4,842 किमी दूर है। जबकि B2 बॉम्बर 11 हजार किमी से ज्यादा दूरी तक सटीक निशाना लगा सकता है। यानी B2 बॉम्बर ईरान पहुंचकर बंकरों पर बम गिरा सकता है और वापस भी आ सकता है। B2 बॉम्बर 50 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ता है और इसे बम गिराने के लिए साफ और खुले आसमान की जरूरत होती है, जिससे निशाना एकदम सटीक बैठे।

B2 बॉम्बर के लिए इजराइल ने पहले ही ईरान का आसमान साफ कर दिया है। 16 जून को इजराइल की सेना ने दावा किया कि उसने ईरान की राजधानी के आसमान पर कब्जा कर लिया है। इजराइल ने ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम और मिसाइल सिस्टम को बेहद कमजोर कर दिया है। तभी इजराइल लगातार ईरान पर आसमान से बम बरसा रहा है।

इसके अलावा अमेरिका ने Tomahawk Land Attack Missile का इस्तेमाल किया। यह एक लॉन्ग-रेंज, सब-सोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे जमीन पर मौजूद टारगेट्स को निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। ये GPS, Inertial Navigation System और Terrain Contour Matching जैसे एडवांस नेविगेशन सिस्टम से लैस होती है। यह बेहद निचली ऊंचाई पर उड़ सकती है, जिससे रडार से बच सकती है। मिसाइल लॉन्च के बाद खुद-ब-खुद तय रास्ते पर चलती है और टारगेट पर जाकर सटीक वार करती है।

सवाल-3: आखिर अमेरिका को ईरान के खिलाफ खुली जंग में क्यों उतरना पड़ा?

जवाबः इजराइल और ईरान के बीच संघर्ष में ट्रम्प का स्टैंड 4 स्टेप में बदला है…

1. शुरुआत में ट्रम्प ईरान पर हमले के पक्ष में नहीं थे: न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ‘न्यूक्लियर डील प्रभावित न हो, इसलिए ट्रम्प नहीं चाहते थे कि इजराइल, ईरान पर हमला करे। वह ईरान को अपनी शर्तों पर चलाना चाहते थे, न कि इजराइल की शर्तों पर।’

‘मई में ट्रम्प ने नेतन्याहू को फोन पर चेतावनी भी दी। अपने एक सहयोगी से कहा कि नेतन्याहू उन्हें मिडिल-ईस्ट में एक बड़े युद्ध में घसीटने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उन्होंने अमेरिका की जनता से वादा किया था कि वे अमेरिका को किसी भी जंग से दूर रखेंगे। महीनों तक वे यह सोचते रहे कि नेतन्याहू का गुस्सा कैसे कंट्रोल किया जाए।’

2. नेतन्याहू नहीं रुके, तो बीच का रास्ता अपनाया: अखबार के मुताबिक, ‘ट्रम्प ईरान के परमाणु कार्यक्रम को किसी भी तरह रोकना चाहते थे, लेकिन वह बातचीत आगे नहीं बढ़ा रहा था। इजराइलियों ने उन्हें यकीन दिलाया कि सैन्य विकल्प खोलने से ईरान के साथ डील आसान हो जाएगी।

ट्रम्प प्रशासन भी नेतन्याहू को रोकने में सक्षम नहीं था। ऐसे में ट्रम्प को उनका समर्थन करना पड़ा। उन्होंने इस बात को भी झुठला दिया कि ईरान अभी कोई परमाणु बम नहीं बना रहा है।’

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ‘9 जून को नेतन्याहू ने ट्रम्प को फोन पर कहा था- मिशन शुरू हो गया है। हमारी सेना ईरान के अंदर मौजूद है। फोन कटने के बाद बाद ट्रम्प ने अपने साथ मौजूद लोगों से कहा– मुझे लगता है, हमें उनकी (इजराइल की) मदद करनी होगी।’

3. इजराइल को जंग में बढ़त मिली, तो खुलकर उसके साथ आ गए: इजराइल के हमला शुरू करने के बाद ट्रम्प ने शुरुआत में इससे दूरी बनाए रखी, लेकिन जब इजराइल को जंग में ईरान पर शुरुआती बढ़त मिली तो ट्रम्प खुलेआम उनके पक्ष में आ गए। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जब ट्रम्प ने अपने पसंदीदा फॉक्स न्यूज चैनल पर इजराइली हमले की तस्वीरें देखीं, तो इसका क्रेडिट लेने से खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने फोन पर पत्रकारों से कहना शुरू कर दिया कि इस हमले में पर्दे के पीछे से उनकी भूमिका, लोगों को जितना पता है, उससे कहीं ज्यादा ज्यादा है।’

4. सीधी जंग में उतरे, न्यूक्लियर साइट पर बमबारी कीः अमेरिका की खुफिया एजेंसियों का अनुमान था कि इजराइल के हमलों से ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को सिर्फ करीब छह महीने की ही रुकावट पहुंची है। अगर इजराइल आगे और हमले करता है, तो उससे ज्यादा नुकसान नहीं होगा। इसीलिए ट्रम्प ने B2 बॉम्बर चलाने की अनुमति दे दी।

18 जून को जंग के पांचवें दिन इजराइल के तेल अवीव में दो बड़े बोर्ड लगाए गए, जिन पर ट्रम्प की तस्वीर के साथ लिखा है- ‘मिस्टर प्रेसिडेंट, काम खत्म करो!’

सवाल-4: अमेरिका की ईरान से दुश्मनी क्या है?

जवाबः 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति आई थी। अयातुल्लाह रुहोल्ला खुमैनी की अगुआई में अमेरिका के करीबी शाही शासन को खत्म कर दिया गया और ईरान एक इस्लामिक गणराज्य बन गया। इसके बाद ईरान में अमेरिका का विरोध बढ़ गया…

  • 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद ईरानी छात्रों ने तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमला कर दिया। वहां मौजूद 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बना लिया। इस घटना ने अमेरिका और ईरान के रिश्तों में दरार डाल दी।
  • ईरान के परमाणु प्रोजेक्ट की वजह से दोनों देशों की दुश्मनी बढ़ गई। अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह डर है कि ईरान परमाणु हथियार बना कर मिडिल ईस्ट पर दबदबा बढ़ा सकता है। इसे रोकने के लिए अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए।

हालांकि ईरान के साथ अमेरिकी दुश्मनी की एक बड़ी वजह इजराइल है। यहूदियों का अमेरिका पर बहुत ज्यादा प्रभाव है। अमेरिका में सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन इजराइल का समर्थन नहीं रुकता। अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी हो, वो हर तरह से इजराइल की मदद करते हैं। इसलिए अमेरिका भी ईरान से दुश्मनी माने बैठा है।

22 जून को ईरान के अंदर परमाणु ठिकानों पर बम गिराने के बाद इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को दुनिया का साहसी नेता और इजराइल का सबसे बड़ा दोस्त बताते हुए कहा-

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धन्यवाद राष्ट्रपति ट्रम्प, आपका ईरान के अंदर परमाणु ठिकानों पर हमला करने का कड़ा कदम उठाया है। ये इतिहास बदल देगा। पूरे यहूदी समुदाय और इजराइली नागरिकों की ओर से मैं आभार प्रकट करता हूं।

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सवाल-5: अमेरिका के शामिल होने के बाद अब आगे क्या हो सकता है?

जवाबः CNN ने सूत्रों के हवाले से बताया कि फिलहाल ट्रम्प की ईरान में और सैन्य कार्रवाई की कोई योजना नहीं है। ट्रम्प का मानना है कि कूटनीति ठप पड़ने के बाद ईरान के सशक्त परमाणु ठिकानों को निशाना बनाना जरूरी हो गया था। हालांकि अमेरिका ईरान की संभावित जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार है, लेकिन ट्रम्प चाहते हैं कि ईरानी नेता इस युद्ध को खत्म करने पर सहमत हों और आगे बातचीत का रास्ता खुले। अमेरिका के सीधी जंग में कूदने के बाद अब 4 सिनैरियो बन सकते हैं…

सिनेरियो-1: ईरान फिर से बातचीत शुरू कर सकता है

13 जून को इजराइल के हमले से पहले ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत चल रही थी। ईरान, हथियार बनाने के लायक यूरेनियम तैयार कर रहा था, और बदले में अगर वह अपने कार्यक्रम पर कुछ रोक लगाता, तो उसे आर्थिक राहत मिलती।

हालांकि कोई फाइनल समझौता नहीं हुआ था, लेकिन बातचीत की उम्मीद थी। इजराइल के हमले से बातचीत टूट गई। फिर भी, ईरान ने संकेत दिए हैं कि वह बातचीत को तैयार है। यहां तक कि फोर्डो पर हमला भी बातचीत की संभावना को पूरी तरह खत्म नहीं करता।

सिनेरियो-2: ईरान परमाणु हथियार बनाने की रफ्तार बढ़ा सकता है

फोर्डो सबका ध्यान खींच रहा है, लेकिन हो सकता है कि ईरान के पास ऐसे गुप्त न्यूक्लियर ठिकाने भी हों, जिनके बारे में अमेरिका या इजराइल को पता न हो। अगर ऐसा है, तो अमेरिकी हमले के बाद ईरान इनका इस्तेमाल करके परमाणु कार्यक्रम और तेज कर सकता है।

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अभी ईरान के पास न्यूक्लियर हथियार जल्दी से बनाने की पूरी क्षमता नहीं है, लेकिन वह उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकता है।

सिनेरियो-3: अन्य देशों के शामिल होने से जंग फैल सकती है

अब तक ईरान ने इजराइल पर मिसाइलें दागीं हैं, लेकिन अमेरिका के सैनिकों या उसके ठिकानों पर हमला नहीं किया। न ही उसने अमेरिका के अरब साथियों जैसे सऊदी अरब या यूएई को निशाना बनाया है। ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होरमुज में भी अब तक तेल सप्लाई रोकने जैसी कोई बड़ी हरकत नहीं की है।

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा था- अगर अमेरिका हमला करता है, तो हम उसका जवाब देंगे, जैसे इजराइल को दिया। जब जंग होती है, तो दोनों तरफ से हमला होता है। और आत्मरक्षा हर देश का अधिकार है।

अब तक ईरान के दोस्त देश जैसे यमन के हूती, लेबनान के हिजबुल्लाह और इराक के कुछ हथियारबंद समूह जंग में शामिल नहीं हुए हैं। अगर ये भी शामिल हुए, तो लड़ाई और ज्यादा फैल सकती है।

सिनेरियो-4: सत्ता परिवर्तन की चर्चा, गृहयुद्ध की स्थिति बन सकती है

अगर ईरान के सर्वोच्च नेता की मौत भी हो जाए, तब भी ईरान की सत्ता इतनी आसानी से नहीं गिरेगी।

ईरान की सबसे ताकतवर सैन्य शाखा इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) देश की सत्ता अपने हाथ में ले सकती है। वो या तो कोई पश्चिम समर्थक सरकार लाएंगे या किसी और कट्टरपंथी को सत्ता में बैठाएंगे, जो लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहेगा।

अगर सेना ने जल्दी हस्तक्षेप नहीं किया, तो देश में अराजकता या गृहयुद्ध जैसी स्थिति भी बन सकती है। लेकिन यह उम्मीद बहुत कम है कि ईरान की कमजोर और दबी हुई उदारवादी विपक्षी ताकतें सत्ता में आ पाएंगी।

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अमेरिका ने ईरान में 3 परमाणु ठिकानों पर हमला किया है। इसमें फोर्डो, नतांज और इस्फहान शामिल हैं। यह हमला भारतीय समयानुसार रविवार सुबह 4:30 बजे हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसकी जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि फोर्डो पर बमों की एक पूरी खेप गिरा दी गई है। पढ़िए हर बड़ी अपडेट…



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