Wednesday, June 25, 2025

Why MP is the lifeline of Indian Army: | इंडियन आर्मी की लाइफलाइन क्यों है एमपी: युद्ध की रणनीति और गोला-बारूद की सप्लाई यहीं से, एयरफोर्स स्टेशन और बॉर्डर सिक्योरिटी की ट्रेनिंग भी – Madhya Pradesh News

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भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का करारा जवाब पाकिस्तान में मिसाइल स्ट्राइक से दिया है। भारत ने पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इसमें 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए हैं।भारत की ये जवाबी कार्रवाई पहलगाम हमले के 15 दिन बाद की

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इस जवाबी कार्रवाई के बाद भारत ने सावधानी के तौर पर 7 राज्यों के 18 एयरपोर्ट्स पर फ्लाइट्स ऑपरेशन बंद कर दिए हैं। जिन राज्यों में फ्लाइट्स ऑपरेशन बंद किए हैं उनमें पाकिस्तान से सीमा साझा करने वाले जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, गुजरात, पंजाब शामिल हैं। इसके साथ ही एमपी को भी अलर्ट पर रखा है।

एमपी न तो पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करता है और न ही यहां समुद्री सीमा है। जल, थल और वायु तीनों मोर्चे पर सुरक्षित एमपी को हाईअलर्ट पर रखने की क्या वजह है? इसे लेकर भास्कर रिटायर्ड कर्नल डॉ. शैलेंद्र सिंह राणा से बात की..

7 मई को एमपी के तीन बड़े शहरों में ब्लैक आउट किया गया।

जानिए सेना के लिहाज क्यों अहम है एमपी

रिटायर्ड कर्नल डॉ. शैलेंद्र सिंह राणा कहते हैं कि एमपी देश का ह्रदय प्रदेश है। देश की सीमाओं से काफी दूर और सुरक्षित जगह है, इसलिए यहां सेना की कई अहम यूनिट्स हैं। जबलपुर में ऑर्डनेन्स फैक्ट्री है, जहां सेना की तीनों विंग थल, जल और वायु के लिए गोला बारूद तैयार होता है।

वहीं इंदौर के पास महू, सागर, भोपाल, कटनी, ग्वालियर जैसे शहरों में आर्मी और एयरफोर्स से जुड़े कई अहम संस्थान है। ऐसे में एमपी को सेना के इन संस्थानों के लिहाज सेफ के साथ सेंसेटिव कहा जा सकता है।

अब सिलसिलेवार तरीके से जानिए इनके बारे में… ऑर्डनेन्स फैक्ट्री, जबलपुर: सेना के तीनों विंग को गोला-बारूद सप्लाई होता है सेना की जितनी भी रसद है वह सेंट्रल ऑर्डनेन्स डिपो से ही पूरी होती है। खमरिया ऑर्डनेन्स फैक्ट्री में लड़ाकू विमान सुखोई और तेजस के लिए 250 और 120 किलोग्राम के एयर बम बनाए जाते हैं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद खमरिया ऑर्डनेन्स फैक्ट्री के अधिकारी-कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई।

प्रबंधन के मुताबिक उत्पादन को लेकर टारगेट ज्यादा है। बता दें कि 1943 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय इस फैक्ट्री की स्थापना की गई थी। उस वक्त भी मित्र देशों को गोला बारूद यहीं से सप्लाई होता था। बाद में 1962 के चीन युद्ध 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद इसका विस्तार किया गया। कारगिल युद्ध में सेना को यहीं से गोला-बारूद सप्लाई किया गया था।

गन कैरिज फैक्ट्री( GCF), जबलपुर: फौज की ताकत धनुष तोप का निर्माण कारगिल युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाली बोफोर्स तोप का स्वदेशी वर्जन धनुष का निर्माण यहीं पर किया जाता है। सेना की सबसे शक्तिशाली और ऑटोमैटिक धनुष तोप की मारक क्षमता के आगे दुश्मन देश भी कांपते हैं। जबलपुर की GCF फैक्ट्री में निर्मित धनुष में कई विशेषताएं हैं।

इसे 60 डिग्री तक राउंडअप कर सकते हैं। 7 से 10 किमी तक ये खुद ही जा सकती है। 155 MM व 45 कैलिबर की धनुष तोप 38 से 40 किमी तक दूर स्थित निशाने को सटीक तरीके से भेद सकती है। पहाड़ियों पर या आमने-सामने के युद्ध में यह सेना की बड़ी ताकत है।

2012 में शुरू हुआ था धनुष तोप प्रोजेक्ट वर्ष 2012 से धनुष प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था। तब से अब तक कई मॉडर्न फीचर इसमें जोड़े जा चुके हैं। इसमें अपग्रेडेड कम्युनिकेशन सिस्टम लगाया गया है। धनुष सैटेलाइट के जरिए न केवल दुश्मन के ठिकानों की पोजिशन हासिल कर सकती है, बल्कि खुद गोले लोड कर फायर करने में भी सक्षम है। इसके अलावा 155 एमएम 45 कैलिबर की सारंग तोप का निर्माण भी जीसीएफ जबलपुर ने किया है।

207 साल पुरानी है आर्मी की महू छावनी इंदौर के पास महू छावनी सबसे पुरानी छावनियों में से एक है। साल 1818 में जॉन मैल्कम ने इसकी स्थापना की थी। ब्रिटिश राज के दौरान महू दक्षिणी कमान के 5वें डिवीजन का मुख्यालय हुआ करता था। ये सेकेंड वर्ल्ड वॉर तक रहा। महू में भारतीय सेना के तीन प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान इंफेंट्री स्कूल, मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (एमसीटीई) और आर्मी वॉर कॉलेज हैं।

महू वो ही जगह जहां सेना प्रशिक्षण कमान या ARTRAC का जन्म हुआ।ARTRAC 1991 से 1994 तक महू में स्थित था, उसके बाद यह शिमला ( हिमाचल प्रदेश ) में ट्रांसफर हो गया।

इंफेंट्री स्कूल: सैम बहादुर ने की शुरुआत

यहां आर्मी के अफसरों को ट्रेनिंग दी जाती है। स्कूल की कमांडो विंग कर्नाटक के बेलगाम में है । आर्मी मार्क्समैनशिप यूनिट (एएमयू) इंफेंट्री स्कूल का एक हिस्सा है और इसने कई निशानेबाज तैयार किए हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ 1955 से 1956 तक इस स्कूल के पहले भारतीय कमांडेंट थे, जब वे ब्रिगेडियर थे।

मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (एमसीटीई), महू 1967 तक इसे स्कूल ऑफ सिग्नल्स के रूप में जाना जाता था। यह सिग्नल कोर का एल्मा मैटर है। MCTE भारतीय सेना के अधिकारियों, जेसीओएस, एनसीओ और सैनिकों के लिए दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम संचालित करता है। दूसरे देशों के अधिकारी भी यहां ट्रेनिंग लेते हैं।

आर्मी वॉर कॉलेज: यहां सिखाई जाती है रणनीति यहां रणनीति, रसद, समकालीन सैन्य अध्ययन और सैन्य सिद्धांत में सुधार पर अनुसंधान किया जाता है। कॉलेज हर साल भारतीय सशस्त्र बलों के साथ-साथ अर्धसैनिक बलों के लगभग 2500-3000 अधिकारियों को प्रशिक्षित करता है। इसकी स्थापना मूल रूप से 1 अप्रैल 1971 को महू में कॉलेज ऑफ कॉम्बैट के रूप में की गई थी।

इसे इंफेंट्री स्कूल, महू से अलग किया गया था। यह 1988 तक इंफेंट्री स्कूल के परिसर से संचालित होता रहा, जब कॉलेज अपने नए परिसर में चला गया। 2003 में, कॉलेज का नाम बदलकर आर्मी वॉर कॉलेज, महू कर दिया गया।

ग्वालियर एयर फोर्स स्टेशन सेंट्रल एयर कमांड के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान रॉयल एयर फोर्स (RAF) के एक स्टेजिंग पोस्ट के रूप में कार्य किया था। 1950 में, ग्वालियर को एक नए भारतीय वायु सेना बेस के लिए चुना गया था। 1985 में मिराज 2000 को IAF में शामिल किया गया था। तभी से ग्वालियर मिराज 2000 बेड़े का बेस स्टेशन है।

ग्वालियर वायु सेना स्टेशन ने कारगिल युद्ध (1999) में भूमिका निभाई, जिसमें यहां स्थित मिराज 2000 विमान दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने में महत्वपूर्ण थे।

एक्सपर्ट बोले- सावधानी के तौर पर मॉकड्रिल रिटायर्ड कर्नल शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवादियों के ठिकानों को निशाना बनाया है। पिछली बार जो एयर स्ट्राइक की थी उसके मुकाबले इस बार अंदर घुसकर हमला किया है। इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान पलटवार कर भी सकता है, हालांकि इसकी संभावना फिलहाल दिखाई नहीं देती।

यदि ऐसा होता है तो सावधानी के तौर पर मॉकड्रिल और ब्लैक आउट की प्रैक्टिस की गई है। अस्पतालों में बैड्स की संख्या बढ़ा दी गई है। अस्पतालों की इमारतों पर पर रेड क्रॉस का साइन बनाया गया है। लाेगाें को सावधानी के तौर पर टॉर्च, कैश और भोजन का बंदोबस्त करने के लिए कहा है।



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