Wednesday, July 2, 2025

US Deportation; Haryana Immigrants Return Story | Dubai Agent | अमेरिका जाने के डंकी रूट के VIDEO सामने आए: कीचड़ से सने पैर, बारिश के बीच टेंट; डिपोर्ट किए करनाल के युवक ने बनाए थे – Karnal News

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करनाल के युवक आकाश के शेयर किए डंकी रूट के वीडियो में यह तस्वीरें सामने आईं।

हरियाणा में करनाल से अमेरिका गए आकाश के डंकी रूट के वीडियो सामने आए हैं। आकाश जब यहां से गुजरा था तो पनामा के जंगलों से गुजरते वीडियो बनाकर उसने परिवार को भेजे थे। ऐसे 4 वीडियो परिवार ने दिखाए।

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इनमें दिख रहा है कि डंकी रूट से गुजर रहे लोग पनामा के जंगल में कीचड़ से गुजर रहे हैं। उनके बूट कीचड़ से सने हुए हैं। भयावह जंगल में वह टेंट लगाकर रह रहे हैं। बारिश में वह पॉलिथीन से शरीर और सामान को ढक रहे हैं।

जंगल में ही जहां पानी मिला, वहीं नहा रहे हैं। जिस ग्रुप में आकाश जा रहा है, उसमें कई लड़कियों और छोटे बच्चे तक शामिल हैं। आकाश 26 जनवरी को ही अमेरिका पहुंचा था। इसके 10 दिन बाद उसे डिपोर्ट कर दिया गया। परिवार ने उसके डंकी रूट से जाने के लिए 73 लाख रुपए खर्च किए थे। जिसमें उन्होंने आकाश के हिस्से की जमीन बेच दी थी और करीब 15 लाख का लोन भी लिया था। डंकी रूट से अमेरिका जाने की कहानी खबर में आगे पढ़ें…

आकाश के भेजे डंकी रूट के PHOTOS…

डंकी रूट से जा रहे व्यक्ति के पैर कीचड़ से सने हुए हैं और रास्ते में भी वह कीचड़ के ऊपर बैठा हुआ है।

जंगल में रहने के लिए टेंट लगाते डंकी रूट से अमेरिका जा रहे युवक।

जंगल में बैठा एक युवक।

आकाश ने अपने व साथियों का हाल बताते हुए यह वीडियो घरवालों को भेजे थे।

डंकी रूट: बर्फीली नदी फिर तपता रेगिस्तान; 15 हजार किमी के लिए महीनों लगते हैं

भारत से अमेरिका की दूरी करीब 13,500 किमी है। हवाई यात्रा से यहां जाने में 17 से 20 घंटे लगते हैं। हालांकि डंकी रूट से यही दूरी 15 हजार किमी तक हो जाती है और इस सफर में महीनों लग जाते हैं। अमेरिका जाने के लिए 3 पड़ाव पार करने होते हैं…

पहला पड़ाव: भारत से लैटिन अमेरिकी देश

भारत में डंकी रूट का सबसे लोकप्रिय और पहला पड़ाव लैटिन अमेरिकी देश पहुंचना है। इनमें इक्वाडोर, बोलीविया और गुयाना जैसे देश शामिल हैं। इन देशों में भारतीयों को वीजा ऑन अराइवल मिल जाता है। मतलब ये कि इन देशों में जाने के लिए पहले से वीजा लेने की जरूरत नहीं है और ऑन द स्पॉट वीजा दे दिया जाता है।

ब्राजील और वेनेजुएला समेत कुछ अन्य देशों में भारतीयों को आसानी से टूरिस्ट वीजा दे दिया जाता है। यहां से डंकी कोलंबिया पहुंचते हैं। कई लोग दुबई के रास्ते लैटिन अमेरिकी देश जाते हैं। इसमें उन्हें महीनों कंटेनर्स में रहना पड़ता है।

डंकी रूट इस बात पर डिपेंड करता है कि जिस एजेंट के माध्यम से आप जा रहे हैं, उसके संबंधित देशों में कितने कनेक्शन हैं। हालांकि लैटिन अमेरिकी देशों में पहुंचना कठिन नहीं है, फिर भी यहां पहुंचने में महीनों लग जाते हैं। कई बार लोग दस महीने में कठिन परिश्रम और पैसा खर्च करके पहुंचते हैं।

जालंधर, पंजाब के एक एजेंट ने दैनिक भास्कर को बताया कि अमेरिका तक के डंकी रूट के लिए 70 लाख रुपए तक का खर्च आता है, जितना पैसा खर्च करेंगे, उतनी परेशानियां कम होंगी।

दूसरा पड़ावः लैटिन अमेरिकी देशों से अमेरिका

कोलंबिया पहुंचने के बाद डंकी पनामा में एंटर करते हैं। इन दोनों देशों के बीच खतरनाक जंगल डेरियन गैप है। इसे पार करना बेहद जोखिम भरा है। नदी-नालों के बीच में जहरीले कीड़े और सांप का हमेशा डर बना रहता है। ये जंगल डेंजरस क्रिमिनल्स के लिए भी जाना जाता है। इस जंगल में डंकी से लूट होती है। महिला हो या पुरुष यहां के अपराधी उनके साथ रेप तक करते हैं।

कई बार डंकी अगर थोड़ी भी देर के लिए सो गया तो सांप उसे डस लेता है। इस जंगल में डंकियों की लाशें मिलना कोई नहीं बात नहीं है। यहां कोई सरकार नहीं है। अगर किस्मत ने साथ दिया और सब कुछ ठीक रहा तो डंकी 10 से 15 दिन में पनामा का जंगल पार कर जाता है।

ग्वाटेमाला बड़ा सेंटर, यहां एक्सचेंज होते हैं एजेंट

पनामा का जंगल पार करने के बाद अगला पड़ाव ग्वाटेमाला है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए ग्वाटेमाला एक बड़ा कोऑर्डिनेशन सेंटर है। अमेरिकी बॉर्डर की ओर बढ़ते हुए यहां डंकी को दूसरे एजेंट को हैंडओवर किया जाता है।

पिछले साल की बात है। पंजाब के गुरदासपुर का एक युवक गुरपाल सिंह (26) डंकी रूट से मैक्सिको तक पहुंच गया था, लेकिन उसे मैक्सिको में पुलिस ने देख लिया और रुकने के लिए कहा। जल्दबाजी में उसने एक बस पकड़ी और इस दौरान अपनी बहन को पंजाब फोन किया कि पुलिस ने उसे देख लिया है।

इसी दौरान उस बस का एक्सीडेंट हो गया। स्पॉट पर ही उसकी मौत हो गई, लेकिन ये खबर मिलने में परिवार वालों को एक हफ्ता लग गया। उसकी लाश को गुरदासपुर के सांसद सनी देओल की मदद से भारत लाया गया।

पनामा के जंगल से बचना है तो खतरनाक नदी से जाना पड़ेगा

अगर कोई डंकी पनामा जंगल से नहीं जाना चाहता तो कोलंबिया से एक रास्ता और है। यह रास्ता सैन एन्ड्रेस से शुरू होता है। बताया जाता है कि ये रास्ता बेहद रिस्की है। सैन एन्ड्रेस से डंकी सेंट्रल अमेरिका के देश निकारागुआ के लिए नाव लेते हैं। यहां से 150 किलोमीटर का सफर नाव से करने के बाद दूसरी नाव में ट्रांसफर होते हैं, जो मैक्सिको के लिए जाती है। इस नदी में सीमा पुलिस पेट्रोलिंग तो करती ही है। नदी में खतरनाक जानवर जान लेने के लिए तैयार रहते हैं।

इसी साल 31 मार्च को अमेरिका-कनाडा के बॉर्डर पर 8 लोगों के शव मिले थे। इनमें से चार भारतीय थे जो गुजरात के मेहसाणा के रहने वाले थे। मृतकों में प्रवीण चौधरी (50), पत्नी दीक्षा (45), मीत (20) और बेटी विधि (23) थी। ये चारों पहले टूरिस्ट वीजा पर कनाडा गए थे। वहां से अमेरिका जाने के लिए डंकी रूट पकड़ा था। जब ये लोग क्यूबेक-ओंटेरियो सीमा के पास सेंट लॉरेंस नदी पार कर रहे थे, तभी तेज हवा से नाव पलट गई और सभी की मौत हो गई।

तीसरा पड़ावः मैक्सिको से बॉर्डर क्रॉस करके सीधे अमेरिका में दाखिल

अब डंकी को मैक्सिको से यूएस बॉर्डर जाना होगा। रास्ते अलग-अलग तरह की मुसीबतें हैं। सर्दी के साथ बीच में रेगिस्तान भी पड़ता है। इसके बाद डंकी पहुंचता है यूएस मैक्सिको सीमा पर जहां 3,140 किलोमीटर लंबी दीवार बनी हुई है।

डंकी इसी को कूदकर अमेरिका में प्रवेश करते हैं। जो लोग दीवारों को पार नहीं कर पाते, वे रियो ग्रांडे नदी को पार करने का खतरनाक रास्ता चुनते हैं। अमेरिका जाने से पहले डंकी से उसका पासपोर्ट और पहचान वाले दस्तावेज ले लिए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी पहचान हो जाएगी तो उसे वापस इंडिया डिपोर्ट कर दिया जाएगा। अब डंकी अमेरिका में अवैध तरीके से आ गया है।

अमेरिका पहुंचने के बाद क्या होता है?

  • पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में काम करने वाली संस्था स्टडी अब्रॉड कंसल्टेंट एसोसिएशन के चेयरमैन सुकांत त्रिवेदी के मुताबिक अमेरिका में घुसने के बाद डंकी जानबूझकर अपने आप को वहां की पुलिस के हवाले कर देता है। इसके बाद उसे जेल में डाला जाता है। इस जेल को कैम्प कहा जाता है।
  • डंकी को जेल से छुड़ाने के लिए वकील हायर किया जाता है। इसका खर्च एजेंट या डंकी का कोई रिश्तेदार उठाता है। वकील अपनी दलीलों से कोर्ट को भरोसा दिलाता है कि डंकी को अमेरिका में रहने दिया जाए। इसके बाद डंकी को जेल से रिहा किया जाता है।
  • डंकी अमेरिका पर बोझ न बने, इसलिए उसे कमाने और खाने की अनुमति दी जाती है। ये अनुमति बढ़ती रहती है। 8-10 साल में ग्रीन कार्ड मिल जाता है। ग्रीन कार्ड मिलने का मतलब है डंकी अब यूएस में परमानेंट रह सकता है और उसे काम करने का अधिकार है। इसके 10-15 साल बाद उसे अमेरिका की नागरिकता भी मिल जाती है।
  • जिस तरह से भारत में अवैध कॉलोनियों को वैध करने के लिए हर 5 से 7 साल के बीच स्कीम निकाली जाती है। ठीक वैसे ही अमेरिका में अवैध लोगों को नागरिकता देने के लिए स्कीम निकाली जाती है। इसमें कुछ फीस भरने के बाद डंकी अमेरिका का नागरिक बन जाता है।

यदि डंकी का कोई रिश्तेदार या परिचित अमेरिका का नागरिक है तो…

  • जेल में डंकी से पूछा जाता है कि क्या अमेरिका में उसका कोई परिचित रहता है। यदि वह हां कहता है तो उस परिचित से संपर्क किया जाता है और डंकी को रिहा करने के बदले इमिग्रेशन बॉन्ड भरने के लिए कहा जाता है। यह एक तरह की जमानत है, जिसके बदले डंकी को कई शर्तों के साथ रिफ्यूजी कैम्प से रिहा किया जाता है। इस परिचित का इंतजाम एजेंट करते हैं, लेकिन इसके बदले अलग से पैसा लेते हैं।
  • बॉन्ड की राशि इंडिया से डंकी के परिजन एजेंट को देते हैं। ये राशि 3 लाख 40 हजार से 2 करोड़ तक हो सकती है। बॉन्ड कितना लगेगा ये इमिग्रेशन मामलों की अदालत पर डिपेंड करता है।
  • डंकी को कमाने-खाने की अनुमति के साथ जेल से रिहा कर दिया जाता है। इस दौरान डंकी पर अवैध रूप से बॉर्डर पार करने का केस चलता है, जिसमें उसे हर सुनवाई में मौजूद होना जरूरी है। ये जरूरी नहीं है कि हर डंकी को इमिग्रेशन बॉन्ड का मौका मिले। कई लोगों को रिफ्यूजी कैंप में रखने के बाद इंडिया डिपोर्ट भी कर दिया जाता है।

डंकी रूट का खर्चा 50 से 70 लाख रुपए

भारत से एक डंकी के अमेरिका पहुंचने का औसत खर्च 20 से 50 लाख रुपए है। कभी-कभी ये खर्च 70 लाख तक पहुंच जाता है। एजेंट वादा करता है कि डंकी को कम परेशानी झेलनी पड़ेगी, लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होता। ज्यादातर पेमेंट तीन किस्तों में होती है। पहली भारत से निकलने पर, दूसरी कोलंबिया बॉर्डर पहुंचने पर, तीसरी अमेरिकी बॉर्डर के पास पहुंचने पर। पैसों का भुगतान नहीं होने पर एजेंटों के गिरोह मैक्सिको या पनामा में डंकी की हत्या करके पीछा छुड़ा लेते हैं।

अब सवाल उठता है कि लोग लीगल तरीके से क्यों नहीं जाते। दरअसल, ये लोग कम एजुकेटेड होते हैं और विदेशों में बसने के लिए होने वाले एग्जाम क्रैक नहीं कर पाते। यहां तक कि वे ठीक से अंग्रेजी भी नहीं बोल पाते। कुछ समय पहले तक डंकी रूट लेने वाले सबसे ज्यादा लोग पंजाब से हुआ करते थे और ये कनाडा ही जाते थे। जब से स्टडी और वर्किंग वीजा मिलने लगा है। यहां के लोग लीगल तरीके से जाने की तैयारी करने लगे हैं। अब डंकी रूट पकड़ने हरियाणा से भी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं।

अमेरिका से डिपोर्ट हरियाणा के लोगों की कहानी…

डिपोर्ट हुए लोगों में 11 कैथल जिले के हैं। इनमें गांव अटेला का अमन भी शामिल है। उसके परिजनों ने बताया कि अमन करीब 5 महीने पहले ही अमेरिका गया था, लेकिन वहां जाते ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

अमन के पिता कृष्ण बताते हैं कि उन्होंने बेटे को विदेश भेजने के लिए एजेंट से करीब 35 लाख रुपए में डील की थी। कुछ पैसे दे भी दिए थे और कुछ ठीक-ठाक पहुंचाने के बाद देने की सहमति बनी थी।

कृष्ण बताते हैं कि उन्होंने यह रकम रिश्तेदारों, जानकारों व भाईचारे से इकट्ठी कर दी थी। उन्हें उम्मीद थी की बेटा अमेरिका पहुंचेगा तो वहां अच्छी कमाई करेगा, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, लेकिन अब उनके सारे अरमान धरे रह गए।

करनाल के घरौंडा के गांव कालरों से आकाश इसी साल 26 जनवरी को अमेरिका पहुंचा था। गांव के सरपंच दीपेंद्र उर्फ अन्नू ने बताया कि आकाश हमारे परिवार से ही है और परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए वह अपनी जमीन बेचकर व कर्ज उठाकर 73 लाख रुपए खर्च कर अमेरिका गया था। वह 3 महीने पहले घर से निकल गया था और 26 जनवरी को अमेरिका पहुंचा था। इसके पिता वीरेंद्र की कई साल पहले मौत हो चुकी है।

UK पढ़ने भेजा, पैसों की कमी हुई तो USA गया फतेहाबाद जिले के गांव दिगोह में जैसे ही सुखविंद्र सिंह को पता चला की उनका बेटा भी डिपोर्ट होकर भारत लौट रहा है तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। सरपंच हरसिमरन सिंह ने बताया कि सुखविंद्र सिंह उर्फ काला ने 24 वर्षीय बेटे गगनप्रीत सिंह को विदेश में पढ़ाई करवा कर वहीं जॉब करवाने के सपने संजोए थे। उन्होंने अपनी साढ़े 3 एकड़ जमीन में से ढाई एकड़ जमीन बेचकर इंग्लैंड का वीजा लगवा कर सितंबर 2022 में भेजा था, लेकिन वहां पर पार्ट टाइम जॉब नहीं मिलने के कारण यूनिवर्सिटी में बीए थर्ड ईयर की फीस नहीं दे सका।

आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। इसलिए गगनप्रीत ने इंग्लैंड में वीजा एजेंट के झांसे में आकर डंकी के रास्ते से अमेरिका में जाने का मन बनाया। इसी साल जनवरी महीने में जॉब करने के लिए अमेरिका पहुंच गया। जहां पर अवैध तरीके से एंट्री करने के चलते गगनप्रीत सिंह को 20 दिन पहले ही हिरासत में ले लिया था। इस कारण परिजनों से करीब 20 दिनों से फोन पर संपर्क नहीं हो पा रहा था।

जींद के चुहड़पुर गांव का 21 वर्षीय अजय 12वीं पास कर डंकी के रास्ते अमेरिका गया था। परिवार के लोगों ने रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों से जुगाड़ कर 40 लाख रुपए में अजय को अमेरिका भेजा, लेकिन कैंप तक पहुंचने से पहले ही अजय को डिपोर्ट कर दिया गया। दो माह तक अजय बीच रास्ते में रहा। एक माह पहले ही मैक्सिको की दीवार को क्रॉस कर वह अमेरिका की तरफ कूदा था। इसके बाद से वह अमेरिकी पुलिस की कस्टडी में रहा।

अमेरिका से डिपोर्ट हुए लोगों में हिसार जिले के गांव खरड़ अलीपुर का रहने वाला 20 वर्षीय अक्षय भी शामिल है। उसके दादा निहाल सैनी ने कहा कि उनका पोता तो कभी अमेरिका में गया ही नहीं। अक्षय ने 2 महीने पहले फोन पर भी कहा था कि वह अमेरिका नहीं जाएगा। अमेरिका जाने की बात का नहीं पता और न ही अक्षय ने हमसे कभी कहा कि अमेरिका जाने के लिए पैसे भिजवा दो। आखिरी बार अक्षय से करीब एक महीना पहले बात हुई थी। वह घर पर भी कम फोन करता था।

अक्षय के पिता सुभाष सैनी ने बताया कि अक्षय को पढ़ाई के लिए मौसी के पास कैथल भेजा था। इसके बाद अक्षय आईलेट्स करने लगा। चंडीगढ़ आने-जाने लगा। वहां कोचिंग में उसको पौने सात बैंड भी आए थे। मगर डंकी रूट से अमेरिका जाने की बात हमारे समझ नहीं आ रही है। जब अक्षय घर आ जाएगा तो उससे बात करेंगे।

कुरुक्षेत्र के इस्माइलाबाद के रहने वाले मनजीत सिंह ने बताया कि एजेंटों के चक्कर में फंसकर बेटे रोबिन को 18 जुलाई को घर से विदा किया था। एजेंटों ने उन्हें डॉलर की खनक और चमक के सपने दिखाकर बातों में फंसाया था। एजेंट रोबिन को गयाना, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला के टापुओं और जंगलों में घुमाते रहे। मारपीट कर पहले उसका फोन छीना और बाद में उससे डॉलर भी छीन लिए गए। एजेंट उसे भूखा प्यासा रखते थे और बार-बार जंगल में छोड़ देने की धमकी देते रहते थे। 45 लाख रुपए देकर बेटे को अमेरिका तो पहुंचा दिया, मगर अमेरिका में दाखिल होने लगे तो उनको डिपोर्ट कर दिया।

कुरुक्षेत्र के गांव चम्मुकलां के जसवंत सिंह ने बताया कि उसने अपने बेटे खुशप्रीत सिंह को करीब 5 महीने पहले एजेंटों के जरिए 40 लाख रुपए खर्च कर अमेरिका भेजा था। इस दौरान उनकी अपने बेटे से कोई बातचीत नहीं हुई। बेटे को अमेरिका भेजने के चक्कर में उन पर लाखों रुपए का कर्ज चढ़ गया, मगर तसल्ली इस बात की है कि उनका बेटा सही-सलामत वापस आ रहा है। अब यहां कोई और काम कर लेगा।

नीलोखेड़ी के 45 वर्षीय परमजीत सिंह अपनी पत्नी ओमी देवी, बेटे जतिन और बेटी काजल के साथ अमेरिका में डंकी के रास्ते गए थे। गांव हैबतपुर के सरपंच राजपाल बताते है कि परमजीत अपने परिवार के साथ कुरुक्षेत्र में रहता था। वह करीब 12 एकड़ का जमीदार है। उसकी बेटी अमेरिका में स्टडी वीजा पर गई हुई है।

वह चाहता था कि पूरे परिवार के साथ अमेरिका में सेटल हो जाए, इसलिए वह 2 महीने पहले ही अपना कुरूक्षेत्र वाला मकान और प्लॉट बेचकर डंकी से अमेरिका चला गया था। बीती 19 जनवरी यानी ट्रंप के शपथ ग्रहण से 2 दिन पहले अमेरिका में एंट्री कर गया था, लेकिन वहां पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और कैंप में भेज दिया था।

इन्हें कैंप से ही डिपोर्ट कर दिया गया है। अब यह परिवार हैबतपुर में आकर अपने पुश्तैनी मकान में ही रहेगा या फिर किसी रिश्तेदारी में शरण लेगा, इसका कुछ नहीं पता। न ही परमजीत के परिवार से कोई संपर्क हो पा रहा है। सरपंच का कहना है कि हमने प्रशासनिक अधिकारियों से भी कॉन्टेक्ट किया था कि हमें उनकी डिटेल दे दी जाए, ताकि हम उसे रिसीव कर सकें, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया।

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